यदि कोई व्यक्ति भारतीय कानून के तहत घरेलू हिंसा का दोषी पाया जाता है, तो न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर दुर्व्यवहार करने वाले के खिलाफ कई कार्रवाई कर सकता है। यहाँ मुख्य कानूनी उपाय और दंड दिए गए हैं: घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (PWDVA) के तहत: सुरक्षा आदेश (धारा 18) न्यायालय दुर्व्यवहार करने वाले को घरेलू हिंसा के आगे के कृत्य करने या पीड़ित से संपर्क करने से रोक सकता है। निवास आदेश (धारा 19) न्यायालय निम्न कर सकता है: दुर्व्यवहार करने वाले को महिला को उसके साझा घर से बेदखल करने से रोकना दुर्व्यवहार करने वाले को घर छोड़ने का निर्देश देना उसे घर के कुछ हिस्सों में प्रवेश करने से रोकना मौद्रिक राहत (धारा 20) न्यायालय दुर्व्यवहार करने वाले को चिकित्सा व्यय, आय की हानि, भरण-पोषण और क्षति के लिए भुगतान करने का आदेश दे सकता है। हिरासत आदेश (धारा 21) पीड़ित महिला को बच्चों की अस्थायी हिरासत दी जा सकती है, जिसमें दुर्व्यवहार करने वाले के लिए मुलाक़ात पर प्रतिबंध होगा। मुआवज़ा आदेश (धारा 22) दुर्व्यवहार करने वाले को शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक नुकसान के लिए मुआवज़ा देने का आदेश दिया जा सकता है। आपराधिक दंड (धारा 31) न्यायालय के आदेशों (जैसे संरक्षण या निवास आदेश) का उल्लंघन दंडनीय अपराध है: 1 वर्ष तक कारावास ₹20,000 तक जुर्माना या दोनों भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत: आईपीसी की धारा 498ए - पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता: सजा: 3 वर्ष तक कारावास और जुर्माना तथ्यों के आधार पर आईपीसी की अन्य धाराएँ भी लागू हो सकती हैं: धारा 323 - चोट पहुँचाना धारा 506 - आपराधिक धमकी धारा 354 - महिला पर हमला धारा 376 - बलात्कार (यदि लागू हो) न्यायालय पुलिस को गिरफ्तारी या निगरानी सहित निवारक या जाँच कदम उठाने का निर्देश भी दे सकता है। पीड़ित एक साथ डीवी एक्ट के तहत सिविल राहत और आईपीसी के तहत आपराधिक सजा की मांग कर सकता है। अदालतें अक्सर तत्काल सुरक्षा और दीर्घकालिक न्याय प्रदान करने के लिए काम करती हैं।
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