हाँ, भारतीय कानून के तहत, एक मरीज़ डॉक्टर, अस्पताल या क्लिनिक पर मुकदमा कर सकता है, भले ही उसके पास लिखित बिल या रिपोर्ट न हो। 1. कानूनी आधार ऐसे मामले आमतौर पर निम्नलिखित के अंतर्गत आते हैं: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 – चिकित्सीय लापरवाही या सेवा में कमी के लिए अपकृत्य कानून – लापरवाही से नुकसान पहुँचाने के लिए भारतीय दंड संहिता – आपराधिक मामलों में (धारा 304A, 337, 338) 2. लिखित दस्तावेज़ अनिवार्य नहीं हैं। हालाँकि एक लिखित बिल या रिपोर्ट किसी मामले को मज़बूत बनाने में मदद करती है, लेकिन शिकायत या दीवानी मुकदमा शुरू करने के लिए कानूनी तौर पर इनकी आवश्यकता नहीं है। मरीज़ इन पर भरोसा कर सकता है: मौखिक गवाही चिकित्सा नुस्खे, डिस्चार्ज सारांश, या नुस्खे गवाह (नर्स, परिवार, आदि) इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (कॉल, व्हाट्सएप, अपॉइंटमेंट संदेश) तस्वीरें/वीडियो अस्पताल के रिस्टबैंड, रसीदें, या दवा की पैकेजिंग 3. उपभोक्ता न्यायालय में शिकायत एक मरीज़ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर सकता है, जिसमें निम्नलिखित का दावा किया जा सकता है: चिकित्सा लापरवाही सेवा में कमी अधिक शुल्क कोई बिल न होने पर शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती, लेकिन साक्ष्य का भार मरीज़ पर होता है। 4. एफआईआर या आपराधिक शिकायत यदि घोर लापरवाही के कारण मृत्यु या गंभीर क्षति हुई है, तो मरीज (या परिवार) निम्नलिखित के तहत पुलिस शिकायत दर्ज करा सकता है: आईपीसी की धारा 304A - लापरवाही से मृत्यु आईपीसी की धारा 337/338 - लापरवाही से चोट या गंभीर चोट पहुँचाना 5. चिकित्सा परिषद शिकायत बिल के बिना भी, पेशेवर कदाचार के लिए राज्य चिकित्सा परिषद या भारतीय चिकित्सा परिषद में शिकायत की जा सकती है। दोषी पाए जाने पर, डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित या रद्द किया जा सकता है। निष्कर्ष: हाँ, एक मरीज लिखित बिल या रिपोर्ट के बिना भी मुकदमा कर सकता है, बशर्ते यह दिखाने के लिए पर्याप्त वैकल्पिक सबूत हों कि इलाज हुआ था और लापरवाही या कदाचार हुआ था।
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